फर्जी मैडीकल हाल पर मारा छापा एफडीए टीम ने की 37 प्रकार की दवाएं जब्त

चंडीगढ़ & हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री श्री अनिल विज के निर्देशानुसार खाद्य एवं औषधि प्रशासन विभाग की टीम ने जींद में एक शिकायत के आधार पर जींद के भिवानी बाई पास रोड़ स्थित मैसर्स सुरेश मेडिकल हॉल नामक गैर लाइसेंस परिसर में छापेमारी की] जिसमें 37 विभिन्न प्रकार की एलोपैथिक दवाओं का भंडार था और सभी दवाओं को जब्त कर लिया गया।

इस संबंध में जानकारी देते हुए खाद्य और औषधि प्रशासन विभाग के एक प्रवक्ता ने बताया कि जींद की ड्रग कंट्रोल अधिकारी विजय राजे राठी ने अन्य अधिकारियों के साथ इस मैडीकल हॉल में छापा मारा और यहां 37 प्रकार की दवाओं को जब्त किया गया है तथा आरोपी के खिलाफ अदालत से हिरासत के आदेश ले लिए गए हैं।प्रवक्ता ने बताया कि स्वास्थ्य मंत्री के प्रदेश के लिंगानुपात की ओर सुधाकर 950 की दर तक ले जाने के संकल्प को पूरा करने व हरियाणा सरकार के बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओं अभियान को कामयाब करने के लिए ऐसी संयुक्त रेड मिशन पूरा होने तक हरियाणा में जारी रहेंगी।

सोच-समझकर लें सप्लीमेंट्स, नहीं तो हो सकता है सेहत को नुकसान

बैलेंस्ड डाइट का अर्थ होता है संतुलित आहार। अब पोषक तत्वों का यह संतुलन कैसे कायम किया जाए, इसका निर्धारण हरेक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति के अनुसार अलग हो सकता है।

इसलिए हरेक व्यक्ति की बैलेंस्ड डाइट अलग-अलग होती है, जिसमें सभी पोषक तत्वों का सही अनुपात और ज़रूरत पडऩे पर डॉक्टर की सलाह पर सप्लीमेंट्स का भी योगदान होता है।

अकसर देखा गया है कि बहुत से लोग बिना सही जानकारी के कोई भी लक्षण दिखने पर अपने ही आंकलन के अनुसार कैल्शियम और प्रोटीन के सप्लीमेंट्स लेना शुरू कर देते हैं, जिसके सेहत पर काफी दुष्प्रभाव हो सकते हैं।

कमी हो तभी लें

बाज़ार में मौज़ूद मल्टी विटमिंस की बात करें तो उनकी कंपोज़ीशन और उनकी मात्रा दोनों पर ध्यान दिया जाना ज़रूरी है, क्योंकि बिना सलाह के लिए जाने बहुत से सप्लीमेंट्स के कंपोज़ीशन में उनकी मात्रा में कमी हो सकती है और व्यक्ति को केवल मानसिक संतुष्टि हो सकती है कि उसने सप्लीमेंट लेने शुरू कर दिए हैं।

केवल डॉक्टर उन कैप्सूल्स की कंपोज़ीशन और व्यक्ति में उसकी कमी के अनुसार डोज़ निर्धारित कर सकता है।

ज़रूरी बातें

जब करें कैल्शियम का सेवन:

कैल्शियम के अत्यधिक सेवन के कारण पेट से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं, क्योंकि कैल्शियम का एक कैप्सूल खाने के लिहाज़ से भारी होता है। ऐसे में चक्कर आना, ब्लोटिंग, पेट खराब रहना जैसी समस्याएं नज़र आती हैं।

इसके साथ-साथ महिलाओं में पीरियड्स का दर्द भी बढ़ सकता है। इसके कारण नसों और मस्तिष्क के संचालन में भी समस्याएं आ सकती हैं और किडनी में पथरी की समस्या का जोखिम हो सकता है।

बी कॉम्प्लेक्स का भी सोचें:

बी कॉम्प्लेक्स के सेवन के साथ तुलनात्मक रूप से गंभीर समस्या देखने को नहीं मिलती, क्योंकि यह पानी में घुल जाता है।

प्रोटीन को  करें नज़रअंदाज़:

प्रोटीन के सेवन की यदि बात करें तो मुख्य बिंदु संतुलन बनाने का है। यह संतुलन है प्रोटीन के सेवन और व्यायाम का, क्योंकि प्रोटीन के सेवन के साथ व्यायाम का सही संतुलन न रखा जाए तो लिया गया अतिरिक्त प्रोटीन किडनी और लिवर में जमना शुरुर हो जाता है।

इम्यूनिटी जब उल्टा काम करने लगे, तो ये पड़ता है असर शरीर पर: Must know

कोरोना काल में सबसे ज्यादा चर्चा इम्युनिटी की हुई। लोग इम्युनिटी बढ़ाने के लिए क्या-क्या जतन नहीं किए। बाजार में इम्युनिटी बढ़ाने के लिए दवाइयों की बाढ़ आ गई।

एक समय तो इसका ब्लैक मार्केटिंग तक होने लगा। दरअसल, इम्युनिटी (immune) शरीर में बैक्टीरिया, फंगस, वायरस जैसी बाहरी शक्तियों से लड़ने या इन्हें खत्म करने के काम आती है।

जैसे शरीर के अंदर यानी खून में किसी बैक्टीरिया, वायरस आदि का जैसे ही प्रवेश होते हैं, इम्युन सिस्टम सक्रिय हो जाता है। एक तरह से यह फौज की तरह काम करता है।

हेल्थलाइन की खबर के मुताबिक इम्युन सिस्टम शरीर में बाहरी आक्रमण होने पर यह अपनी फौज को उसे खत्म करने के लिए निर्देश देता है।

यह वायरस या बैक्टीरिया का काम तमाम करने के बाद वापस लौट आता है, लेकिन कभी-कभी यह इम्युनिटी उल्टा काम करने लगती है और अपने ही कोशिकाओं को मारना शुरू कर देती है। इसे ऑटोइम्युन बीमारी कहते हैं।

ऑटोइम्युन की बीमारी कई तरह की होती हैं। टाइप-1 डायबिटीज भी एक तरह से ऑटोइम्युन बीमारी है है। इसी तरह ऑर्थराइटिस, सोरयासिस (Psoriasis), मल्टीपल स्क्लेरोसिस (Multiple sclerosis), एडीसन डिजीज, ग्रेव्स डिजीज आदि ऑटोइम्युन डिजीज के प्रकार हैं। बीमारी की गंभीरता के आधार पर ऑटोइम्युन बीमारी खतरनाक साबित हो सकती है।

ऑटोइम्यून बीमारियों के लक्षण क्या हैं

हर ऑटोइम्यून बीमारी के लक्षण अलग-अलग होते हैं।ऑटोइम्यूज बीमारियों में कुछ लक्षण समान हो सकते हैं जैसे जोड़ों में दर्द और सूजन, थकावट, बुखार, चकत्ते, बेचैनी आदि।इसके अलावा स्किन पर रेडनेस, हल्का बुखार, किसी चीज पर ध्यान केंद्रित नहीं होना, हाथ और पैर में कंपकपाहट, बाल झड़ना, स्किन पर रैशेज पड़ना आदि लक्षण ऑटोइम्युनि बीमारियों में आम हैं। इस बीमारी के लक्षण बचपन में भी दिख सकते हैं।

किसे है ज्यादा जोखिम

जिन लोगों के परिवार में यह पहले से मौजूद हैं, उनमें इस बीमारी का जोखिम सबसे ज्यादा है यानी इसमें आनुवंशिकता अहम भूमिका निभाती है।

अगर आपके परिवार में किसी को भी किसी तरह की ऑटोइम्यून बीमारी है तो आपको भी इस तरह की बीमारी हो सकती है। इस बीमारी का खतरा पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में अधिक होता है।

ऑटोइम्यून बीमारियों की पहचान

ऑटोइम्यून बीमारी का पता लगाने के लिए डॉक्टर मरीज़ की पूरी मेडिकल हिस्ट्री के बारे में जानते हैं।शारीरिक जांच करते हैं और खून में ऑटोएंटीबॉडीज का पता लगाने के लिए ब्लड टेस्ट भी कराते हैं।

संतुलित आहार लेना जरूरू

ऑटोइम्युन की किसी भी तरह की बीमारी में संतुलित आहार लेना बेहद जरूरी है।इसके लिए पुराना चावल, जौ, मक्का, राई, गेहूं, बाजरा, मकई और दलिया का सेवन करना फायदेमंद रहेगा। इसके अलावा मूंग की दाल, मसूर की दाल और काली दाल का सेवन करना भी फायदेमंद है।मटर और सोयाबीन भी फायदेमंद है। फल और सब्जियों में सेब, अमरूद, पपीता, चेरी, जामुन,एप्रिकोट,आम, तरबूज, एवोकाडो, अनानास, केला, परवल, लौकी, तोरई, कद्दू, ब्रोकली का सेवन करें।

Cholesterol के बारे में मन में है ये धारणा, तो अभी इसे निकाल दें

Myth about cholesterol: अक्सर हेल्थ के मामले में कोलेस्ट्रॉल की चर्चा होती रहती है. आमतौर पर कहा जाता है कि कोलेस्ट्रॉल का स्तर ज्यादा हो गया, इसलिए इन चीजों पर कंट्रोल करें या फैटी चीजों का सेवन नहीं करें।

यह सच है कि ज्यादा कोलेस्ट्रॉल के कारण कई प्रकार की परेशानियां पैदा हो जाती हैं, लेकिन कोलेस्ट्रॉल हमारे शरीर के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। कोलेस्ट्रॉल दो प्रकार के होते हैं।

पहला बैड कोलेस्ट्रॉल जो मानव शरीर के लिए खतरनाक है और दूसरा गुड कोलेस्ट्रॉल जो शरीर के लिए प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट की तरह ही जरूरी है।

कोलेस्ट्रॉल मानव कोशिकाओं के बाहर एक खास एलिमेंट से बनी हुई परत होती है। इसे मेडिकल साइंस की भाषा में कोलेस्ट्रॉल या लिपिड कहा जाता है।

मानव शरीर में होने वाली शारीरिक क्रियाओं को ठीक तरीके से पूरा करने के लिए कोलेस्ट्रॉल का होना बेहद जरूरी होता है। हमारे शरीर के विकास के लिए यह कई जरूरी हार्मोन का निर्माण करता है।

हालांकि कोलेस्ट्रॉल को लेकर लोगों में कई तरह कई तरह के मिथ हैं।

कोलेस्ट्रॉल के बारे में मिथ

सभी कोलेस्ट्रॉल खराब होते है

कोलेस्ट्रॉल सेल मेंब्रेन का सबसे महत्वपूर्ण घटक है। कोलेस्ट्रॉल ही स्टेरॉयड हार्मोन को बनाता है। इसलिए यह कहना कि सभी कोलेस्ट्रॉल खराब है, बिल्कुल गलत है।

डॉ ग्रीनफील्ड बताते हैं कि कोलेस्ट्रॉल खराब नहीं होता। यह बिल्कुल निर्दोष है जिसे आधुनिक जीवनशैली में गलत तरह से पेश किया जा रहा है।

कोलेस्ट्रॉल के कारण ही विटामिन डी बनता है। हाई डेंसिटी लाइपोप्रोटीन यानी गुड कोलेस्ट्रॉल का ऊंचा स्तर भी नुकसानदेह नहीं है।

यह खून की नलिकाओं से कोलेस्ट्रॉल के अन्य हानिकारक रूप को साफ कर देता है। हां अगर बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर बहुत बढ़ जाए, तो इससे बीमारी का खतरा हो सकता है।

हेल्दी हैं तो कोलेस्ट्रॉल सही होगा

 लोगों में यह भी धारणा होती है कि मैं तो हेल्दी हूं मेरा कोलेस्ट्रॉल बढ़ा नहीं होगा। ऐसा बिल्कुल गलत है।

डॉ ग्रीनफील्ड बताते हैं कि कोलेस्ट्रॉल न कम होना ठीक है ना ज्यादा होना ठीक है बल्कि इसका संतुलित होना जरूरी है।विज्ञापन

कोई लक्षण नहीं दिख रहा

कुछ लोग कहते हैं कि अगर मुझे हाई कोलेस्ट्रॉल होता तो इसके लक्षण दिखते। यह भी धारणा गलत है। कोलेस्ट्रॉल का बढ़ा हुआ स्तर आमतौर पर ऊपर से नहीं दिखता।

बैड कोलेस्ट्रॉल क्या हैलो डेंसिटी लिपोप्रोटीन को बैड कोलेस्ट्रॉल कहते हैं। जब लाइपोप्रोटीन में प्रोटीन की जगह फैट की मात्रा अधिक होने लगती है, तो यहां बैड कोलेस्ट्रॉल जमा होने लगता है। इस स्थिति में हार्ट संबंधी रोग होने का खतरा काफी बढ़ जाता है।

First Aid Box में जरूर रखें इन 10 चीजों को: Very useful in emergency

घर पर फर्स्ट एड बॉक्स (First Aid Box) का होना बहुत ही जरूरी होता है। छोटी छोटी चोट, बुखार, इन्फैक्शन या स्वास्थ्य संबं‍धी किसी भी तरह की समस्या होने पर C-19 महामारी के समय में तुरंत डॉक्टर के पास जाना संभव नहीं होता और ऐसे में ये बॉक्स बहुत काम आती है।

कई घरों में ये बॉक्स तो होता है लेकिन समय समय पर इसे वे अपडेट नहीं करते जिससे एमरजेंसी के समय मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यही नहीं, कई बार तो सालों से इसमें रखीं दवाएं एक्सपायर हो जाती हैं।

ऐसे में यह जरूरी है कि समय समय पर इसे चेक करते रहा जाए और जरूरी चीजों को रीफिल किया जाए। तो यहां हम आपको बता रहे हैं कि आपके फर्स्‍ट एड बॉक्स में क्या-क्या चीजें होना जरूरी है।

1. पेनकिलर दवाएं

अगर घर में सबसे जरूरी किसी दवा की जरूरत होती है तो वो है दर्दनिवारक दवाएं। फिर वह चाहे सिर दर्द, पेट दर्द, ज्‍वाइंट पेन की दवा हो या सूजन आदि के दौरान लिए जाने की।

ऐसे में आप डॉक्टर की सलाह पर कुछ दवाओं को अपने बॉक्स में एमरजंसी दवाओं के रूप में रख सकते हैं।

2. बैंडेज

घर पर काम के दौरान चोट आना एक आम बात है। ऐसे में घाव को खुला रखने से इन्फेक्शन्स की संभावना होती है। इसलिए घर में बैंडज का होना बहुत ही जरूरी  है। इसके अलावा कॉटन और पट्टी को भी जरूर इसमें रखें।

3. एंटीसेप्टिक क्रीम

कटने या छिलने के बाद घाव को तुरंत डिटॉल के पानी से धोएं और एंटीसेप्टिक क्रीम या सॉल्युशन का इस्तेमाल करें। एंटीसेप्टिक क्रीम घाव पर बैक्टीरिया पनपने के खतरे को कम करता है।

इसलिए मेडिकल एड बॉक्स में इसे जरूर रखें। आप सेफरामाइसिन या बरनॉल आदि रख सकते हैं।

4.  गैस या बदहजमी की दवा

कई बार बासी खाना या बाहर का खाना खाने से पेट दर्द, मरोड़, कब्ज, गैस, बदहजमी जैसी कई समस्याएं आती हैं ऐस में राहत के लिए एंटासिड, पुदीनहरा, डाइजिन आदि दवाओं को रखें।

ये पेट की समस्याओं से तत्काल छुटकारा दिलाने के काम आ सकती है।

5. इलेक्ट्रॉल और ग्लूकोज

गर्मी और बारिश के मौसम में अक्सर शरीर में नमक व मिनरल्स की कमी हो जाती है और डीहाइड्रेशन का अनुभव होता है। ऐसा होने पर तुरंत ग्‍लास में इलेक्ट्रॉल का घोल पीना बहुत ही फायदेमंद होता है।

ग्लूकोज के सेवन से आप दुबारा से तरोताजा हो जाते हैं।

6. पेट की समस्या की दवाएं 

पेट खराब होना, दस्त, उबकाई, अपच, बदहज़मी के लिए पेप्टोबिस्मॉल का इस्तेमाल किया जाता है। ईनो, पुदीन हरा, डाइजीन भी रखें। पेरासिटामोल, एवोमिन, कोरेक्स जैसी सामान्य दवाइयां भी जरूरत के समय काफी काम आती है।

7.  थर्मामीटर

सिजनल फीवर या कोरोना सभी में थर्मामीटर की तो जरूरत पड़ती ही है। ऐसे में हर घर में एक या दो  थर्मोमीटर होना ही चाहिए।

8. एंटी एलर्जिक दवाएं

त्वचा पर होने वाली खुजली व चकत्तों से राहत पाने के लिए एंटी एलर्जिक दवाएं, एंटी फगल क्रीम, एलोवेरा जेल और बर्न क्रीम रखना भी ज़रूरी है।

कटने, छिलने आदि में उपचार के लिए सोफरामाइसीन जैसे एंटी बैक्टीरियल या एंटीबॉयोटिक ऑइंटमेंट रखें।

9.  बाम या वेपोरब

सिर दर्द, सर्दी ज़ुकाम, हाथ पैर और कमर दर्द के लिए बाम बहुत ही उपयोगी है। बाम इस प्रकार के दर्द से तुरंत राहत दिलाने में कारगर होता है। ऐसे में ओमनीजेल, विक्‍स वेपोरब, मूव आदि जरूर रखें।

10. ब्लडप्रैशर मशीन और ऑक्‍सीमीटर

घर में अगर बुजुर्ग है तो आपको ब्‍लड प्रेशर मापते की मशीन जरूर रखनी चाहिए। इसके अलावा, कोरोना महामारी के दौरान घर घर में ऑक्‍सीमीटर का होना भी जरूरी है।

इन चीजों को भी जरूर रखेंकैंची, आइस बैग, हीटिंग बैग, रूई, बड्स, पिन, सेफ्टीपिन आदि भी फर्स्ट एड बॉक्स में जरूर रखें।

ड्रग थेरेपी  के जरिए अल्जाइमर के सस्ते और बेहतर इलाज की जगी उम्मीद : Study

आमतौर पर बुजुर्गों को होने वाली मानसिक बीमारी अल्जाइमर का अब तक कोई सटीक और पूर्ण इलाज नहीं खोजा जा सका है।

इसलिए इस रोग की उत्पत्ति के कारकों और उसके बढ़ने की दर को समझने के लिए लगातार स्टडी जारी है।

ताकि इसके कारणों के बारे में बेहतर जानकारी से रोकथाम और फिर इलाज में मदद मिल सकती है। इस दिशा में शोध में लगे जापान के रिकेन सेंटर ऑफ ब्रेन साइंसेज के रिसर्चर्स की एक टीम ने ऐसी ड्रग थेरेपी की खोज की है, जो एंडोस्फलाइन अल्फा यानी ईएनएसए  की गतिविधियों को ब्लॉक कर देगा और ये इस समय उपलब्ध उपायों में एक सस्ता और बेहतर इलाज साबित हो सकता है।

कैसे हुई स्टडी

रिकेन सेंटर ऑफ ब्रेन साइंस के रिसर्चर्स ताकाओमी सैदो और उनकी टीम ने ये समझने के लिए एक ऐसा माउस मॉडल विकसित किया, जिसमें एबी का संग्रहण और स्मरण शक्ति  में कमी इंसानों की तरह होता है।

इसी मॉडल के सहारे रिसर्चर्स ने ऐसे घटनाक्रमों की शृंखलाबद्ध खोज की है, जो ब्रेन में एबी की परत बनने की स्थितियां पैदा करते हैं।

इसमें एक प्रमुख कारक नेप्रिल्सन एंजाइम का लेवल कम होना है, जो खुद ही सोमास्टोस्टैटिन हार्मोन के कम होने से पैदा होता है।

ऐसा देखा गया कि उम्र बढ़ने के साथ नेप्रिल्सिन और सोमैटोस्टैटिन दोनों का स्तर उम्र बढ़ने पर कम होता है। यही कारण माना जाता है कि अल्जाइमर औमतौर पर बुजुर्गों को होता है।

अल्जाइमर के इलाज के लिए चूहों पर की गई ताजा स्टडी में इस बात का खास ध्यान रखा गया कि सोमास्टोटैटिन किस प्रकार से नेप्रिल्सन के लेवल को कंट्रोल करता है।

क्या कहते हैं जानकार

स्टडी के फर्स्ट राइटर नाओतो वातमुरा के अनुसार, इस प्रक्रिया में पहला चरण काफी कठिन रहा, क्योंकि हमेने एक इन विट्रो सिस्टम विकसित किया था, जो कंट्रोल माध्यम में नेप्रिल्सन रेगुलेटर को स्क्रीन कर सकता है जो हिप्पोकैंपल न्यूरॉन से पैदा होता है।

ये प्रयोग पूरा होने के बाद उन्होंने ईएनएसए की पहचान एक रेगुलेटर के रूप में की, आगे के प्रयोग में पता चला कि ईएनएसए नेप्रिल्सिन की गतिविधियों को कम देता है और जिन चूहों के ब्रेन में सोमास्टोस्टैटिन कम होता है, उनमें नेप्रिल्सन असामान्य रूप से बढ़ जाता है।

इसका मतलब यह है कि सोमास्टोस्टैटिन सामान्य तौर पर ईएनएसए पर अंकुश रखता है, जो नेप्रिल्सन का स्तर ऊंचा बनाए रखता है, जिससे एबी संग्रहित होने से पहले ही नष्ट हो जाता है।

स्टडी में क्या निकला

इसके बाद स्टडी टीम ने जीवित प्राणियों में ईएनएसए पर ध्यान केंद्रित किया। इसमें सीआरआइएसपीआर तकनीक का इस्तेमाल करते हुए ईएनएसए नॉकआउट माउस मॉडल विकसित कर उसका कनेक्शन अल्जाइमर रोग से पीड़ित मॉडल माउस से कराया गया।

इसमें पाया गया कि नए चूहों में एबी का संग्रहण मूल चूहों की तुलना में काफी कम था। इससे संकेत मिला कि ईएनएसए का हाई लेवल अल्जाइमर के लक्षण या बायोमार्कर हो सकता है, जिसकी पहचान अभी तक नहीं हो पाई थी।

जांच से पता चला कि ईएनएसए हिप्पोकैंपस में पोटाशियम चैनल को ब्लॉक कर देता है। हिप्पोकैंपस ब्रेन को वो हिस्सा है जिससे यादों को रिकॉल किया जाता है।

ड्रग्स एवं मादक पदार्थों की तस्करी सहित अन्य गंभीर अपराधों के विरूद्ध, गहलोत सरकार एक्शन के मोड पर

गहलोत सरकार संगठित अपराधों पर प्रभावी रोकथाम के लिए जल्द ही राजस्थान कंट्रोल ऑफ टेररिज्म एंड ऑर्गेनाईज्ड क्राइम बिल लाने जा रही है। इस सख्त कानून से ड्रग्स एवं मादक पदार्थों की तस्करी सहित अन्य गंभीर अपराधों के विरूद्ध प्रभावी कार्रवाई संभव हो सकेगी। सीएम गहलोत ने शुक्रवार को सभी पुलिस अधीक्षकों और पुलिस महानिरीक्षकों की बैठक में अधिकारियों को कानून लाने की तैयारी करने के निर्देश दिए। माना जा रहा है कि गहलोत सरकार 9 फरवरी से शुरू होने वाले विधानसभा सत्र में बिल ला सकती है। सीएम गहलोत ने शुक्रवार को पुलिस अधिकारियों की वीसी के जरिए बैठक ली। प्रदेश की बिगड़ती कानून व्यवस्था से नाराज सीएम गहलोत ने सभी जिला एसपी से दो टूक कहा है कि कानून का इकबाल कायम करना उनकी जिम्मेदारी है। सभी जिला एसपी अपराधों पर प्रभावी रोक लगाए। पीड़ितों को जल्द से जल्द न्याय दिलाए।

कानून का इकबाल कायम करना एसपी की जिम्मेदारी

सीएम गहलोत ने शुक्रवार को वीसी के माध्यम से सभी जिला पुलिस अधीक्षकों और पुलिस महानिरीक्षकों के साथ कानून व्यवस्था का फीडबैक लिया। सीएम ने वीसी में स्पष्ट कहा कि कानून के राज से समझौता नहीं किया जाएगा। थानाधिकारी परिवादियों से आसानी से मिले। अधिकारी निष्पक्ष सोच के साथ काम करें ताकि देश में राजस्थान पुलिस नंबर पर हो। सीएम ने कहा कि मादक पदार्थों के अवैध कारोबार सहित अन्य संगठित अपराधों से भावी पीढ़ी को बड़ा खतरा है। सीएम ने एसओजी को जल्द हेल्पलाइन बनाने के निर्देश भी दिए। सीएम ने कहा कि नेशनल हाइवे पर मादक पदार्थों की बिक्री पर सख्त कार्रवाई हो।

सीएम बोले- घटनाओं की सही जानकारी के लिए सिस्टम विकसित करेंसीएम गहलोत ने कहा कि कुछ प्रकरणों में देखा गया है कि अपराध या घटना होने पर सही जानकारी नहीं मिल पाती है। अधिकारी निचले स्तर पर ऐसा सिस्टम विकसित करें। जिससे घटनाओं की सही जानकारी समय पर मिल सके। पीड़िता को न्याय दिलाने की दिशा में त्वरित कार्रवाई की जा सके। सीएम ने निर्देश दिए कि अवैध हथियारों पर रोकथाम के लिए आर्म्स डीलर के यहां स्टॉक की नियमित मॉनिटरिंग हो। गृह राज्य मंत्री राजेंद्र यादव ने कहा कि कारतूसों के अवैध बेचान पर प्रभावी निगरानी की जाए। बैठक में डीजीपी एमएल लाठर ने सीएम गहलोत को पिछले 3 साल मे किए गए नवाचारों की जानकारी से अवगत कराया। बैठक में मुख्य सचिव निरंजन आर्य और गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अभय कुमार सहित पुलिस विभाग के आला अधिकारी मौजूद रहे।

Brain में इस खास प्रोटीन की कमी होने से बढ़ता है मोटापा : अध्ययन

Key protein linked to Appetite & Obesity: आज के दौर में मोटापा एक बीमारी नहीं है, बल्कि ये कई बीमारियों का हेडक्वाटर है।

मोटापा आपके शरीर में, डायबिटीज, हाईपरटेंशन, हार्ट डिजीज, बैड कोलेस्ट्रॉल, हाई ब्लड प्रेशर जैसी कई बीमारियां अपने साथ लाता है।

अभी तक आप समझ रहे होंगे कि मोटापे का संबंध भूख से होता होगा। जिस व्यक्ति को जितनी भूख लगती है, वो उतना खाता है, फिर उसी कारण उसे मोटापा जकड़ लेता है।

लेकिन ऐसा नहीं है। प्रिंट मीडिया में छपी न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, जापान के रिसर्चर्स ने एक ऐसे प्रोटीन की पहचान की है, जो दिमाग को भूख संबंधी नियमित संकेत देने और मेटाबॉलिज्म में अहम भूमिका निभाता है।

चूहों पर की गई इस स्टडी में पाया गया कि ब्रेन के आगे के हिस्से (Front) में एक्सआरएन1 (XRN1) नामक प्रोटीन कम होने पर उनकी (चूहों) भूख बढ़ जाती है और वह मोटे हो जाते हैं।

जापान की ओआईएसटी यानी ओकीनावा इंस्टीट्यूट आफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी ग्रैजुएट यूनिवर्सिटी (Okinawa Institute of Science and Technology Graduate University) के वैज्ञानिक प्रोफेसर तदाशी यामामोटो (Tadashi Yamamoto) के अनुसार मूलभूत रूप से मोटापे का कारण भोजन करने और उससे उत्पन्न ऊर्जा के समायोजन में असंतुलन होता है।

इस स्टडी को साइंस मैगजीन ‘आईसाइंस (iScience)’ में प्रकाशित किया गया है।

महामारी बन रहीं मोटपे से जुड़ी बीमारियां

मौजूदा समय में मोटापा (Obesity) पब्लिक हेल्थ के लिए चिंता का बड़ा कारण है। विश्व भर में 65 करोड़ से अधिक वयस्क मोटापे के शिकार हैं।

वजन अत्यधिक बढ़ जाने से इससे जुड़ी कई अन्य बीमारियां भी महामारी का रूप लेती जा रही हैं, जैसे- टाइप-2 डायबटीज आदि।

शोध में बताया गया है कि चूहे के दिमाग के अग्रभाग में न्यूरान की कमी करने से उनके दिमाग के उस हिस्से (हाइपोथैलेमस) में एक्सआरएन1 नाम के प्रोटीन की कमी हो जाती है।

इससे शरीर के तापमान, नींद, भूख और प्यास को नियंत्रित किया जाता है। जिन चूहों में इस प्रोटीन की कमी पाई गई, उन्होंने सामान्य चूहों के मुकाबले दोगुना खाना खाया।

Dengue: Platelets दान करने से क्या घट सकती हैं donor के शरीर में Platelets: Must Know

देश में डेंगू (Dengue) के मामले बढ़ने के साथ ही मरीजों में प्लेटलेट्स घटने की समस्या पैदा हो रही है।

ऐसे में दवाओं के माध्यम से शरीर में प्‍लेटलेट (Platelet) की संख्‍या को बढ़ाने के अलावा कई बार ऐसी स्थिति आती है कि मरीज को तत्‍काल प्रभाव से प्‍लेटलेट चढ़ानी पड़ती हैं।

लिहाजा रक्तदान की तरह लोगों से प्लेटलेट दान (Platelet Donation) करने के लिए भी कहा जा रहा है। हालांकि काफी आम हो चुके रक्तदान (Blood Donation) के मुकाबले प्लेटलेट दान करने को लेकर अभी भी लोगों में कुछ संशय रहता है।

हाल ही में देश में बढ़े डेंगू के मामलों के बाद प्लेटलेट दान करने वालों की संख्या बढ़ी है लेकिन इसी दौरान कुछ ऐसे भी लोग सामने आए हैं जिन्होंने प्लेटलेट दान की लेकिन उसके तुरंत बाद डेंगू की चपेट में आ गए और उनकी प्लेटलेट गिरकर 50 हजार से नीचे पहुंच गईं और लोगों में यह डर पैदा हो गया कि यह प्लेटलेट देने की वजह से तो नहीं हुआ।

 हालांकि इस बारे में ऑल इंडिया इंस्‍टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (AIIMS) के पूर्व निदेशक डॉ. एमसी मिश्र कहते हैं कि प्लेटलेट दान करने से कभी कभी प्लेटलेट की कमी नहीं आती। बल्कि एक व्यक्ति 48 घंटे के बाद दोबारा प्लेटलेट्स दान कर सकता है।

डॉ. मिश्र कहते हैं कि फिलहाल जो मामले प्लेटलेट देने के बाद शरीर में इनके घटने के मामले सामने आ रहे हैं उसका प्लेटलेट दान करने से कोई लेना देना नहीं है।

यह संयोग ही हो सकता है कि किसी ने प्लेटलेट दान की और फिर उसे तुरंत बाद डेंगू (Dengue) के मच्छर ने काट लिया हो और फिर उसकी तबियत बिगड़ी हो।

 डेंगू के बुखार के ठीक होने के बाद ही मरीज की प्लेटलेट्स गिरती हैं या गिरने की संभावना होती है। यही फिलहाल सामने आए कुछ मामलों में देखा गया है। लिहाजा प्लेटलेट दान करना पूरी तरह सुरक्षित है।

वे कहते हैं कि पहले जो डॉक्‍टर प्लेटलेट लेते थे वह तकनीक कुछ अलग थी लेकिन अब प्लेटलेट एफरेसिस मशीन की वजह से यह काफी आसान है।

इस मशीन से डोनर के शरीर से सिर्फ प्लेटलेट ही निकाली जाती हैं। इसके लिए रक्तदाता को इस मशीन से जोड़ दिया जाता है लेकिन प्लेटलेट किट में सिर्फ प्लेटलेट इकठ्ठी होती जाती हैं और बाकी का बचा हुआ रक्‍त दोबारा से उसके शरीर में पहुंचा दिया जाता है।

 इस पूरी प्रक्रिया में करीब 40 से 60 मिनट का समय लगता है। खास बात है कि इस मशीन से इकठ्ठा की गई प्लेटलेट से मरीज के शरीर में एक बार में 50-60 हजार प्लेटलेट की संख्याया बढ़ाई जा सकती है।

यू.पी. में ऑक्सिटोसिन इंजेक्शन की सहज उपलब्धता और मादा पशुओं में होता प्रयोग

मेरठ –  यू.पी. के मेरठ में पिछले दिनों नवाबगढ़ी रोड स्थित एक डेयरी में प्रतिबंधित ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन की भरमार देख विधायक संगीत सोम चौंक गए। दरअसल विधायक क्षेत्र का भ्रमण कर लौट रहे थे। नवाबगढ़ी में जाम में उनका काफिला फंस गया। वह उतरकर एक डेयरी में पहुंचे तो वहां का नजारा देखकर दंग रह गए। उन्होंने पशु चिकित्सा अधिकारी से बात की और कार्रवाई के लिए कहा। इसके अलावा जाम का कारण बन रहे एक ट्रैक्टर को पुलिस ने कब्जे में लेकर सीज कर दिया।मामला सुबह का है। विधायक संगीत सोम क्षेत्र में भ्रमण कर अपने काफिले के साथ सरधना आ रहे थे। जैसे ही वह नवाबगढ़ी गांव के निकट पहुंचे तो वहां सड़क पर एक ट्रैक्टर मशीन से पुआल की थ्रेसिंग कर रहा था। जिसके चलते सड़क अवरुध हो रही थी। विधायक का काफिला वहां फंस गया। विधायक ने पुलिस को बुला लिया। पुलिस ने थ्रेसिंग कर रहे ट्रैक्टर को कब्जे में लिया और सीज कर दिया। इसी बीच विधायक एक डेयरी के अंदर पहुंच गए। वहां ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन रखे देख विधायक हैरत में पड़ गए। उन्होंने इसका विरोध जताया तो डेयरी संचालक में हड़कंप मच गया। विधायक ने तुंरत पशु चिकित्सा अधिकारी से बात की और ऑक्सीटोसिन इंजेक्शन का इंस्तेमाल करने वाले डेयरी संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कहा। इस प्रकरण के सामने आने से यह स्पष्ट है कि उत्तरप्रदेश में अभी मादा पशुओं में प्रयोग के लिए प्रतिबंधित इंजेक्शन ऑक्सिटोसिन का काला कारोबार सरेआम चल रहा है और यह राज्य में आसानी से उपलब्ध है। प्रतिबन्ध केवल दस्तावेजों में सिमटा हुआ है।